Wednesday, August 5, 2020

जगन्नाथ भगवान का मंदिर

  •  जगन्नाथ मंदिर की कथा         
21 ब्रह्मांड का स्वामी काल यह पहले सतलोक में रहा करता था इसने तप कर परमात्मा से  21 ब्रह्मांड लिए  है जैसे एक पुत्र अपने पिता से 21 प्लॉट दे देता है इन 21 ब्रह्मांड में जीव आत्माएं नहीं थी तब फिर जोत निरंजन ने अपने पिता से जीवात्माए   मांगी परमात्मा वचनबद्ध होकर इसे जीवात्मा दे देते हैं जीव आत्माएं भी इसलिए देनी पड़ी कि वह जीवात्माए  अपने पति बरता पद से गिर चुकी थी परमात्मा के बार-बार मना करने के बाद भी हम सभी जीव आत्माएं इस काल पर आसक्त हो गए जिसे जोत निरंजन भी कहते हैं काल भगवान भी कहते हैं परमात्मा ने सतलोक में ही इसे रहने का स्थान बता दिया था सबसे पहले जो जीवात्मा जोत निरंजन के साथ आने के लिए कदम उठाई थी उसका नाम दुर्गा व कन्या का रूप परमात्मा ने दिया उस कन्या को परमात्मा ने आदेश दिया था कि आप जोत निरंजन की सृष्टि में सहायता करेंगी जितनी जीव आत्मा जोत निरंजन को चाहिए  देंगी जोत निरंजन ने उसका सुंदर रूप देखकर उसके साथ गलत व्यवहार किया किया जिससे हम वहां से निकाल दिए गए वह परमात्मा जिसने सभी ब्रह्मणों की रचना की है वह कबीर देव है वह सतलोक में रहता है यह काल अपने 21 ब्रह्मांड में अपना हुकम चलाता है अपना राज करता है यहां पर उस पूर्ण परमात्मा की जीवात्मा इस काल के जाल में फंसी हुई है वह काल इनके साथ दुर्व्यवहार करता है इस कारण एक बार परमात्मा दुखी होकर इसके पास आए परमात्मा को देखकर काल भयभीत हो गया और परमात्मा को मारना चाहा अंतर्यामी को कौन मार सकता है परमात्मा ने उसकी पिटाई की पिटाई खाने के बाद वह जोत निरंजन परमात्मा से माफी मांगा और बोला  परमात्मा आप मेरे इस ब्रह्मांड को मत उजाडो  और आप यहां से जीव आत्माएं अपनी बना के ले जाना आप संसार में जाओ और अपना ज्ञान प्रचार करो लेकिन अपना बना कर ही ले जाना जो अपना नहीं बनेगा वह मेरे जाल में ही रहेगा और परमात्मा से यह कहा था कि परमात्मा मेरा पुत्र विष्णु त्रेता युग में पृथ्वी पर मेरे हुक्म के अनुसार लीला करेगा तब समुद्र उसको रास्ता नहीं देगा तो आप समुद्र में पुल बनवा देना तथा कलयुग में समुद्र अपना बदला लेना चाहेगा श्री कृष्ण के मंदिर को नहीं बनने देगा बार-बार तोड़ेगा तो आप मंदिर बनवा देना परमात्मा ने कहा ठीक है और वह अंतर्ध्यान हो गए अपने वचन के अनुसार परमात्मा त्रेता युग में मुनींद्र ऋषि के रूप में आए नल और नीर नामक दो अपने भक्तों से वह  राम सेतु पुल बनवाया और अंतर्ध्यान हो गए फिर  कलयुग में परमात्मा ओडिशा पुरी में प्रकट होकर समुद्र के सामने एक चबूतरा बनवाया वह चबूतरा आज भी मौजूद है उस चबूतरे पर स्वयं परमात्मा साधु रूप बनाकर विराजमान हुए और समुद्र को आदेश दिया कि आप भगवान श्री कृष्ण की खाली पड़ी द्वारकापुरी को डुबोकर अपना प्रतिशोध ले सकते हो परमात्मा कबीर साहिब ने वह मंदिर बनवा कर आदेश दिया था कि इस मंदिर में किसी प्रकार का पाखंडवाद नहीं होगा नहीं इस मंदिर में मूर्ति पूजा होगी मूर्ति सिर्फ दर्शनार्थ होगी वह मूर्ति भी स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ने ही बनाई थी कबीर परमात्मा एक कमरे में बंद होकर अपनी लीला अनुसार मूर्ति बना रहे थे तभी गोरखनाथ जी अपनी सिद्धि से वहां आ जाते हैं और कहते हैं कमरे को खोल कर देखो कारीगर कैसी  मूर्ति बना रहा है कमरे को खोलकर देखा तो परमात्मा अंतर्ध्यान हो गए और मूर्ति आधी अधूरी रह गई वही आधी अधूरी मूर्ति वहां पर स्थापित कर दी गई अधिक जानकारी के लिए देखिए साधना टीवी 7:30 से 8:30 रात को व पढ़िए ज्ञान गंगा पुस्तक व अनेक पुस्तकें भी संत रामपाल जी महाराज के आश्रम से पूरे संसार में सेवा की जाती है जिनका नाम अलग-अलग हो सकता है 

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